पास रह कर जुदा-सी लगती है
पास रह कर जुदा-सी लगी है
ज़िंदगी बेवफ़ा सी लगती है
मैं तुम्हारे बग़ैर भी जी लूँ
ये दुआ, बददुआ-सी लगती है
नाम उसका लिखा है आँखों में
आंसुओं की ख़ता-सी लगती है
वह अभी इस तरफ़ से गुज़रा है
ये ज़मीं आसमाँ-सी लगती है
प्यार करना भी जुर्म है शायद
मुझसे दुनिया ख़फ़ा-सी लगती है
—बशीर बद्र, ‘मैं बशीर हूँ’ २०१० वाणी प्रकाशन