Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

पास रह कर जुदा-सी लगती है

पास रह कर जुदा-सी लगी है

ज़िंदगी बेवफ़ा सी लगती है

मैं तुम्हारे बग़ैर भी जी लूँ

ये दुआ, बददुआ-सी लगती है

नाम उसका लिखा है आँखों में

आंसुओं की ख़ता-सी लगती है

वह अभी इस तरफ़ से गुज़रा है

ये ज़मीं आसमाँ-सी लगती है

प्यार करना भी जुर्म है शायद

मुझसे दुनिया ख़फ़ा-सी लगती है

—बशीर बद्र, ‘मैं बशीर हूँ’ २०१० वाणी प्रकाशन 

Read More
Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

वक़्ते रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए

वक़्ते रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए

हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आए

बस गयी है मेरे एहसास में ये कैसी महक

कोई ख़ुशबू मैं लगाऊँ तेरी ख़ुशबू आए

इन दिनों आपका आलम भी अजब आलम है

तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए

उसकी बातें कि गुलोलाला पे शबनम बरसे

सबको अपनाने का उस शोख़ को जादू आए

उसने छूकर मुझे पत्थर से फिर इन्सान किया

मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए

—बशीर बद्र, ‘कल्चर यक्साँ’ वाणी प्रकाशन 

Read More
Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

हंस रहा था मैं बहुत गो वक्त वह रोने का था

हंस रहा था मैं बहुत गो वक्त वह रोने का था

सख़्त कितना मर्हला तुझ से जुदा होने का था 

रतजगे तक़सीम करती फिर रही हैं शहर में

शौक़ जिन आँखों को कल तक रात में सोने का था 

इस सफ़र में बस मेरी तन्हाई मेरे साथ थी

हर क़दम क्यों ख़ौफ़ मुझ को भीड़ में खोने का था

हर बुन-ए-मू1 से दरिंदो की सदा आने लगी

काम ही ऐसा बदन में ख़्वाहिशें बोने का था

मैंने जब से यह सुना है ख़ुद से भी नादिम हूँ मैं

ज़िक्र तुझ होंठों पे मेरे दर-बदर होने का था 

— शहरयार, ‘कहीं कुछ कम है’ वाणी प्रकाशन

1बाल की जड़ 

Read More
Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

जो तू हँसी है तो हर इक अधर पे रहना सीख

जो तू हँसी है तो हर इक अधर पे रहना सीख

अगर है अश्क़ तो औरों के ग़म में बहना सीख

अगर है हादिसा तो दिल से दूर-दूर ही रह

अगर है दिल तो सभी हादिसों को सहना सीख

अगर तू कान है तो झूठ के क़रीब न आ

अगर तू होंठ है तो सच बात को ही कहना सीख

अगर तू फूल है तो खिल सभी के आँगन में

अगर तू जुल्म की दीवार है तो ढहना सीख

अहम् नहीं है तो आ तू ‘कुँवर’ के साथ में चल

अहम् अगर है तो फिर अपने घर में रहना सीख

—कुँवर बेचैन, ‘आँधियों धीरे चलो’ वाणी प्रकाशन

Read More