जो तू हँसी है तो हर इक अधर पे रहना सीख

जो तू हँसी है तो हर इक अधर पे रहना सीख

अगर है अश्क़ तो औरों के ग़म में बहना सीख

अगर है हादिसा तो दिल से दूर-दूर ही रह

अगर है दिल तो सभी हादिसों को सहना सीख

अगर तू कान है तो झूठ के क़रीब न आ

अगर तू होंठ है तो सच बात को ही कहना सीख

अगर तू फूल है तो खिल सभी के आँगन में

अगर तू जुल्म की दीवार है तो ढहना सीख

अहम् नहीं है तो आ तू ‘कुँवर’ के साथ में चल

अहम् अगर है तो फिर अपने घर में रहना सीख

—कुँवर बेचैन, ‘आँधियों धीरे चलो’ वाणी प्रकाशन

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