Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

सफ़र में

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

यहाँ किसी को भी कोई रास्ता नहीं देता

मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो

हर इक सफ़र को है महफ़ूज़ रास्तों की तलाश

हिफ़ाज़तों की रवायत बदल सको तो चलो

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें 

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं

तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो 

—निदा फ़ाज़ली, ‘आँखों भर आकाश’ वाणी प्रकाशन  

Read More
Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

तेरी बातें ही सुनाने आए 

तेरी बातें ही सुनाने आए 

दोस्त भी दिल ही दुखाने आए

फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं

तेरे आने के ज़माने आए

ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे

हम तुझे हाल सुनाने आए

इश्क़ तनहा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म

कौन ये बोझ उठाने आए

अजनबी दोस्त हमें देख कि हम

कुछ तुझे याद दिलाने आए

दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम

काश फिर कोई बुलाने आए

अब तो रोने से भी दिल दुखता है

शायद अब होश ठिकाने आए

क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी

लोग क्यूँ जश्न मनाने आए

सो रहो मौत के पहलू में ‘फ़राज़’

नींद किस वक़्त न जाने आए

—अहमद फ़राज़

Read More
Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

हंस रहा था मैं बहुत गो वक्त वह रोने का था

हंस रहा था मैं बहुत गो वक्त वह रोने का था

सख़्त कितना मर्हला तुझ से जुदा होने का था 

रतजगे तक़सीम करती फिर रही हैं शहर में

शौक़ जिन आँखों को कल तक रात में सोने का था 

इस सफ़र में बस मेरी तन्हाई मेरे साथ थी

हर क़दम क्यों ख़ौफ़ मुझ को भीड़ में खोने का था

हर बुन-ए-मू1 से दरिंदो की सदा आने लगी

काम ही ऐसा बदन में ख़्वाहिशें बोने का था

मैंने जब से यह सुना है ख़ुद से भी नादिम हूँ मैं

ज़िक्र तुझ होंठों पे मेरे दर-बदर होने का था 

— शहरयार, ‘कहीं कुछ कम है’ वाणी प्रकाशन

1बाल की जड़ 

Read More
Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

जो तू हँसी है तो हर इक अधर पे रहना सीख

जो तू हँसी है तो हर इक अधर पे रहना सीख

अगर है अश्क़ तो औरों के ग़म में बहना सीख

अगर है हादिसा तो दिल से दूर-दूर ही रह

अगर है दिल तो सभी हादिसों को सहना सीख

अगर तू कान है तो झूठ के क़रीब न आ

अगर तू होंठ है तो सच बात को ही कहना सीख

अगर तू फूल है तो खिल सभी के आँगन में

अगर तू जुल्म की दीवार है तो ढहना सीख

अहम् नहीं है तो आ तू ‘कुँवर’ के साथ में चल

अहम् अगर है तो फिर अपने घर में रहना सीख

—कुँवर बेचैन, ‘आँधियों धीरे चलो’ वाणी प्रकाशन

Read More