पास रह कर जुदा-सी लगती है
पास रह कर जुदा-सी लगी है
ज़िंदगी बेवफ़ा सी लगती है
मैं तुम्हारे बग़ैर भी जी लूँ
ये दुआ, बददुआ-सी लगती है
नाम उसका लिखा है आँखों में
आंसुओं की ख़ता-सी लगती है
वह अभी इस तरफ़ से गुज़रा है
ये ज़मीं आसमाँ-सी लगती है
प्यार करना भी जुर्म है शायद
मुझसे दुनिया ख़फ़ा-सी लगती है
—बशीर बद्र, ‘मैं बशीर हूँ’ २०१० वाणी प्रकाशन
वक़्ते रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए
वक़्ते रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए
हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आए
बस गयी है मेरे एहसास में ये कैसी महक
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊँ तेरी ख़ुशबू आए
इन दिनों आपका आलम भी अजब आलम है
तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए
उसकी बातें कि गुलोलाला पे शबनम बरसे
सबको अपनाने का उस शोख़ को जादू आए
उसने छूकर मुझे पत्थर से फिर इन्सान किया
मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए
—बशीर बद्र, ‘कल्चर यक्साँ’ वाणी प्रकाशन