किरदार होना चाहिए
ना कि गोया हाज़िर ए दरबार होना चाहिए
आदमी को साहिब ए किरदार होना चाहिए
थूक दें फिर चाट लें, फिर थूक कर फिर चाट लें
इस सियासी रस्म पे धिक्कार होना चाहिए
थे बहुत वादे, मगर वादों का हासिल कुछ नहीं
हां, मेरे महबूब को सरकार होना चाहिए
नब्ज़ में थाम कर ये कह गए हैं चारागर
बस यही ईलाज है, दीदार होना चाहिए
मौसमों से क्या शिकायत, फितरतों से क्या गिला
कुदरती बदलाव है स्वीकार होना चाहिए
राख हो कर ही रहेंगी ज़िंदगी की मुश्किलें
खून तेज़ाबी, जिगर अंगार होना चाहिए
धूप में होगी ज़रूरत इसकी भी औ’ उसकी भी
पांव में जूता, सिर पे दस्तार होना चाहिए
फुरसतों की चाह में निकले दुआ दिल से यही
सात में से आठ दिन इतवार होना चाहिए
—अर्चना अर्चन