फ़र्ज़ करो

फ़र्ज़ करो हम अहले-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों

फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों अफ़साने हों

फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता, जी से जोड़ सुनाई हो

फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी, आधी हमने छुपाई हो

फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के, ढूँढें हमनें बहाने हों

फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सचमुच के मैखानें हों

फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूठा, झूठी पीत हमारी हो

फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो

फ़र्ज़ करो ये जोग बिजोग का हमने ढोंग रचाया हो

फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सबकुछ माया हो

-इब्ने इंशा,

‘प्रतिनिधि कविताएँ’ राजकमल प्रकाशन

Previous
Previous

Narrative theology # 1