Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

बारिश आने से पहले

बारिश आने से पहले

बारिश से बचने की तैयारी है

सारी दरारें बंद कर लीं हैं

और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है

खिड़की जो खुलती है बाहर

उसके ऊपर भी एक छज्जा खींच दिया है

मेन सड़क से गली में होकर, दरवाज़े तक आता रास्ता 

बजरी-मिट्टी डाल के उसको कूट रहे हैं!

यहीं कहीं कुछ गड़हों में

बारिश आती है तो पानी भर जाता है

जूते पाँव, पाएँचे सब सन जाते हैं

गले न पड़ जाये सतरंगी 

भीग न जाएँ बादल से

सावन से बच कर जीते हैं

बारिश आने से पहले 

बारिश से बचने की तैयारी जारी है!

—गुलज़ार 

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वक़्ते रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए

वक़्ते रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए

हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आए

बस गयी है मेरे एहसास में ये कैसी महक

कोई ख़ुशबू मैं लगाऊँ तेरी ख़ुशबू आए

इन दिनों आपका आलम भी अजब आलम है

तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए

उसकी बातें कि गुलोलाला पे शबनम बरसे

सबको अपनाने का उस शोख़ को जादू आए

उसने छूकर मुझे पत्थर से फिर इन्सान किया

मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए

—बशीर बद्र, ‘कल्चर यक्साँ’ वाणी प्रकाशन 

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सफ़र में

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

यहाँ किसी को भी कोई रास्ता नहीं देता

मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो

हर इक सफ़र को है महफ़ूज़ रास्तों की तलाश

हिफ़ाज़तों की रवायत बदल सको तो चलो

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें 

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं

तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो 

—निदा फ़ाज़ली, ‘आँखों भर आकाश’ वाणी प्रकाशन  

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