Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

घड़ी

ऑफिस जाते हुए आज

घड़ी भूल गई हो तुम अपनी

मैं भी अपनी घड़ी

यहीं रखे जा रहा हूँ

साथ रहे कोई

तो कट जाता है वक़्त

-आलोक १०/०९/२०२४

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सुपरहीरो

(स्कूल से घर लौटते समय, आदु और पापा की बातचीत)

पापा, आज मैंने क्लास में 

सुपरहीरो मास्क बनाया

वैरी नाइस, आदु

कुछ बताओ अपने हीरो के बारे में

वो हरे रंग का है

और हवा में  उड़ता है 

अरे और भी तो बताओ,

वो करता क्या है?

क्या-क्या पावर्स हैं उसकी?

वो रेड लाइट को ग्रीन कर देता है

और पौधों को, पेड़ों को, और फूलों को 

जल्दी से बड़ा कर देता है, फ़ास्ट-फ़ास्ट 

और सूरज को भी उगा देता है जल्दी 

ताकि दिन जल्दी शुरू हो 

और सारे बच्चे टाइम से स्कूल पहुँचे

आदु की बातें सुन पापा ने सोचा

कितनी अलग होती न वो दुनिया

जहां सुपरहीरो होने का मापदंड

लड़ने का बल नहीं

पेड़ पालने का कौशल होता 

और ये पक्का करना

के सब उठें सूरज के संग  

और समय से पहुँचें अपनी मंज़िलों तक 

(स्कूल से घर लौटते समय, पापा को ‘आदु सर’ की ये क्लासेज़ बहुत अच्छी लगती हैं)

-आलोक, ०६/०२/२०२४

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कॉल

कभी कभी

किसी सुबह ऐसे ही

मैं हिंदी की कोई क़िताब उठा कर पढ़ने लगता हूँ

क़िताब नहीं तो कोई पैकेजिंग या कहीं पड़ी शब्दों की कुछ कतरनें

“अतः उनके साहित्य में भारतीयता का स्वर स्पष्ट रूप से मुखरित हुआ है”

“चलते चलते मेरे पाँव ठिठक गये”

“गर्म पानी या चाय में मिलायें”

जैसे दूसरे शहर में काम करने वाली संतान

अपने माँ-बाप को कॉल कर लेती है किसी सुबह

“बस ऐसे ही”

“बहुत दिन हो गये थे बात नहीं हुई थी, सोचा हाल चाल पूछ लूँ”

“आप लोग ठीक हो न”


-आलोक, १०/१२/२०२३

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