Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

तेरी बातें ही सुनाने आए 

तेरी बातें ही सुनाने आए 

दोस्त भी दिल ही दुखाने आए

फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं

तेरे आने के ज़माने आए

ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे

हम तुझे हाल सुनाने आए

इश्क़ तनहा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म

कौन ये बोझ उठाने आए

अजनबी दोस्त हमें देख कि हम

कुछ तुझे याद दिलाने आए

दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम

काश फिर कोई बुलाने आए

अब तो रोने से भी दिल दुखता है

शायद अब होश ठिकाने आए

क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी

लोग क्यूँ जश्न मनाने आए

सो रहो मौत के पहलू में ‘फ़राज़’

नींद किस वक़्त न जाने आए

—अहमद फ़राज़

Read More
Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

हंस रहा था मैं बहुत गो वक्त वह रोने का था

हंस रहा था मैं बहुत गो वक्त वह रोने का था

सख़्त कितना मर्हला तुझ से जुदा होने का था 

रतजगे तक़सीम करती फिर रही हैं शहर में

शौक़ जिन आँखों को कल तक रात में सोने का था 

इस सफ़र में बस मेरी तन्हाई मेरे साथ थी

हर क़दम क्यों ख़ौफ़ मुझ को भीड़ में खोने का था

हर बुन-ए-मू1 से दरिंदो की सदा आने लगी

काम ही ऐसा बदन में ख़्वाहिशें बोने का था

मैंने जब से यह सुना है ख़ुद से भी नादिम हूँ मैं

ज़िक्र तुझ होंठों पे मेरे दर-बदर होने का था 

— शहरयार, ‘कहीं कुछ कम है’ वाणी प्रकाशन

1बाल की जड़ 

Read More