Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

सफ़र में

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

यहाँ किसी को भी कोई रास्ता नहीं देता

मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो

हर इक सफ़र को है महफ़ूज़ रास्तों की तलाश

हिफ़ाज़तों की रवायत बदल सको तो चलो

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें 

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं

तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो 

—निदा फ़ाज़ली, ‘आँखों भर आकाश’ वाणी प्रकाशन  

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