Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ 

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ

वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ 

एक जंगल है तेरी आँखों में

मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ 

तू किसी रेल-सी गुज़रती है

मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ 

हर तरफ़ ऐतराज़ होता है

मैं अगर रौशनी में आता हूँ 

एक बाज़ू उखड़ गया जबसे

और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ 

मैं तुझे भूलने की कोशिश में

आज कितने क़रीब पाता हूँ 

कौन ये फ़ासला निभाएगा

मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ

—दुष्यंत कुमार, ‘साये में धूप’

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