Poetry Alok Saini Poetry Alok Saini

घड़ी

ऑफिस जाते हुए आज

घड़ी भूल गई हो तुम अपनी

मैं भी अपनी घड़ी

यहीं रखे जा रहा हूँ

साथ रहे कोई

तो कट जाता है वक़्त

-आलोक १०/०९/२०२४

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Alok Saini Alok Saini

उड़ने को आकास मिले

उड़ने को आकास मिले

दिल को कोई आस मिले

दूर परखता रहता ईश्वर 

कभी तो अपने पास मिले

जीवन दरिया बहता पानी

तुम हो गहरी साँस मिले

नाज़ुक सपने टूटे काँच

आँखों में अब फाँस मिले

झोले झोले बाँटी ख़ुशियाँ

ख़ुद से पर उदास मिले

आँखें खोलीं रोया मानुष 

रूह को नया लिबास मिले

माधव माधव रटती मीरा

विष मिले या रास मिले

मीठे लोग, मीठी बातें

दिल में रखी खटास मिले

—आलोक

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