फ़िर एक बार
क़नाट प्लेस की चमचमाती दुकानों के पीछे वाली गलियों में
विजय नगर, कमला नगर, और नॉर्थ कैम्पस की धमनियों में
विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन से आर्ट्स फ़ैक तक
बुक लैंड से पटरी वाले भैय्या की किताबों तक
प्रगति मैदान गेट नम्बर दस से वर्ल्ड बुक फ़ेयेर के हाल्स तक
मंडी हाउस से रवींद्र भवन तक
पसौंदा चौक से तुम्हारे घर की एक गली पहले तक
…
मैं फ़िर से चलना चाहता हूँ तुम्हारे साथ
फ़िर से वो वक़्त बिताना चाहता हूँ, जब वक़्त कम होता था हमारे पास
…
जब हम बिछड़ते थे इक अनकहे वादे के साथ
जब हाथ छोड़ते ही नहीं थे एक दूसरे का हाथ
जब क़दम राह भी थे और मंज़िल भी
जब दिल दरिया भी थे और साहिल भी
…
फ़िर से इक बार छानना चाहता हूँ दिल्ली की गलियों की फाँक
मैं फ़िर से, सिर्फ़, चलना चाहता हूँ तुम्हारे साथ