बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अबकी मैंने जी भर देखी

पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान

—बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अबकी मैं जी भर सुन पाया 

धान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान

—बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अबकी मैंने जी-भर सूंघे 

मौलसिरी के ढेर-ढेर-से ताज़े-टटके फूल

—बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अबकी मैं जी-भर छू पाया

अपनी गँवई पगडण्डी की चन्दनवर्णी धूल

—बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अबकी मैंने तालमखाना खाया

गन्ने चूसे जी-भर

—बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद

अबकी मैंने जी-भर भोगे 

गन्ध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब

साथ-साथ इस भू पर

—बहुत दिनों के बाद

—नागार्जुन, गीत संकलन ‘पाँच जोड़ बांसुरी,’ चंद्रदेव सिंह द्वारा संपादित, २००३ भारतीय ज्ञानपीठ 

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