पनाह
मैंने छोड़े हैं घर
मूँह अँधेरे,
दिन दहाड़े
बताये,
बिन बताये
…
मैंने छोड़े हैं रिश्ते
ऐसे ही जैसे कोई घर छोड़ता है
…
मैं छोड़ आया पीछे
रिश्तों जितने गहरे लम्हे कई
…
पूरी ज़िंदगी बहता रहा
मुड़ कर देखता रहा
उस सब को
जो पीछे छोड़ आया था मैं
…
तुम मिले
तो पनाह मिली है
मुझ रिफ्यूजी को
…
चलो मिलकर एक ज़िंदगी बनते हैं
-आलोक