Alok Saini

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पनाह

मैंने छोड़े हैं घर 

मूँह अँधेरे,

दिन दहाड़े

बताये,

बिन बताये

मैंने छोड़े हैं रिश्ते

ऐसे ही जैसे कोई घर छोड़ता है

मैं छोड़ आया पीछे

रिश्तों जितने गहरे लम्हे कई

पूरी ज़िंदगी बहता रहा

मुड़ कर देखता रहा

उस सब को

जो पीछे छोड़ आया था मैं

तुम मिले

तो पनाह मिली है 

मुझ रिफ्यूजी को

चलो मिलकर एक ज़िंदगी बनते हैं 

-आलोक