Alok Saini

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बेस्ट फ़्रेंड

सुबह से कई बार घंटी बजी है
हर बार दौड़ कर जाता हूँ
दरवाज़ा खोलता हूँ
मायूस वापस आ जाता हूँ अपने कमरे में

ऐसे बर्ताव कर रहा हूँ
जैसे कोई बच्चा
अपने ‘बेस्ट फ़्रेंड्ज़’ का इंतज़ार कर रहा हो

‘फ़्रेंड्ज़’ ही तो हैं
कुछ किताबें मँगवायी थीं ‘ऑनलाइन’
आज आनी हैं तीन
तीन-तीन नयी किताबें!

बस अगली घंटी बजे तो गले मिलूँ उनसे