Alok Saini

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चीनी चाय पीते हुए

चाय पीते हुए

मैं अपने पिता के बारे में सोच रहा हूँ।

आपने कभी

चाय पीते हुए

पिता के बारे में सोचा है?

अच्छी बात नहीं है

पिताओं के बारे में सोचना।

अपनी कलई खुल जाती है।

हम कुछ दूसरे हो सकते थे।

पर सोच की कठिनाई यह है कि दिखा देता है

कि हम कुछ दूसरे हुए होते 

तो पिता के अधिक निकट हुए होते

अधिक उन जैसे हुए होते।

कितनी दूर जाना होता है पिता से 

पिता जैसा होने के लिए।

पिता भी

सवेरे चाय पीते थे।

क्या वह भी 

पिता के बारे में सोचते थे-

निकट या दूर?

—अज्ञेय, ‘संकल्प कविता-दशक’ हिंदी अकादमी, दिल्ली